आज के परिवेश में भारत में अनेकों प्रकार की समस्याएं जन्म लेती जा रही हैं जिससे समाज बट रहा है और लोग जाति धर्म की मजहब की तरफ बढ़ रहे हैं | एक दूसरे को नीचा दिखाने में समाज आगे की तरफ बढ़ रहा है सरकार सिर्फ समस्याओं को लेकर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं | निराकरण किसी भी प्रकार से नहीं हो रहा है भारत विभिनता में एकता वाला देश है फिर भी हम जाति धर्म में बढ़ते जा रहे हैं | सरकारी मशीनरी सिर्फ राजनीतिज्ञों, उद्योगपतियों एवं दबंगों के हाथों में रह गई है ऐसी स्थिति में आजादी के दिनों से जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने इस देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराया था यह सोच कर कि भारत विभिन्नता में एकता का परिचय देते हुए सभी नागरिक सुख संपन्न के साथ जीवन यापन करेंगे | परंतु धीरे-धीरे बदलाव ऐसे मोड़ पर चला गया कि आज लोग अपने स्वार्थ में अपने हित में सोचते हैं | देश और समाज की जो दशा है उस पर किसी की भी नजर नहीं पड़ती है और एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए आपस में लड़ते और समाज को बांटते हैं यही नहीं राजनीति ऐसी स्थिति में पहुंच गई है कि अब अपशब्दों के विचारो में रह गया है राजनीति कुर्सी के लिए चल रहा है सत्ता प्राप्त करने के लिए हमारे देश के नेता इस स्तर पर गिर जाएंगे जो आज के परिवेश में देखा जा सकता है ऐसी समस्याओं से निजात पाने के लिए हमारे देश का कानून व्यवस्था भी हमारे देश के नेताओं का कुछ भी नहीं कर पा रहा है बल्कि आम नागरिक कानून के पालन करने में अपना पूरा जीवन मिटा दे रहा है लेकिन बड़े घराने के लोग इसे कुछ नहीं समझते हैं हमारे देश की जो व्यवस्था है एसी परिस्थितियां बनी हुई हैं आने वाले समय में एक बहुत बड़ा गंभीर समस्या बन कर उभर सकता है ऐसे समस्याओं के निजात के लिए देश के युवाओं को आगे आने की जरूरत है